ये कथाएँ मरे हुए आदमी को जीवित करने के विषय में प्रसिद्ध हैं। कथाएँ लिखना यहाँ अभीष्ट नहीं है बल्कि उनके मूल में निहित विज्ञान तत्त्व का विवेचन करना हमें इष्ट है।
पुराण कथाओं में संजीवनी विद्या की शक्ति से मृतक को पुनरुज्जीवित करने का वर्णन तो है किन्तु इस विद्या का क्या स्वरूप है, किस उपाय या विधान से यह प्राप्त होती है, इस शक्ति को प्राप्त करने की कौन-सी पद्धति है- इत्यदि प्रश्नों का समाधान नहीं मिलता है। हाँ, तन्त्रशास्त्र में संजीवनी विद्या को प्राप्त करने के लिए शतशः विधान है।। संजीवनी विद्या का मूल मन्त्र भी मिलता है और संजीवनी विद्या के अनेक भेद और सिद्ध करने की क्रियाएँ भी प्राप्त हैं।
ईशानशिवगुरुदेव पद्धति में संजीवनी मन्त्र के अनुष्ठान का विधान है। संक्षेपतः परिचय दिया जा रहा है--
संजीवनी मन्त्र
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्-- भर्गोदेवस्यधीमहि उर्वारुकमिव बन्धनोत् धियो यो नः प्रचोदयात् मृत्योर्मुक्षीय माSमृतात्।
संजीवनी मन्त्र का जप करने से पूर्व ध्यान करने का विधान है--
ध्यान
स्वच्छं स्वच्छारविन्दस्थितमुमयकरे संस्थितौ पूर्णकुम्मौ ।
द्वाभ्यामेनाक्षमाले निजकरकमले, द्वौ घटौ नित्यपूर्णौ।।
द्वाभ्यां तौ च स्रवन्तौ शिरसि शशिकलां चामृतैः प्लावयन्तः।
देहं देवी प्रधानः प्रदिशतु विशदा कल्पजालः श्रियं नः।।
ध्यान के अनन्तर त्र्यम्बक महारुद्राय नमः इस मन्त्र से शिव-पूजन करे। तदनन्तर संजीवनी मन्त्र का जप करे। एक लाख जप संख्या पूरी होने पर दशमांश आहुतियाँ देनी चाहिए।
पुराणों के अनुसार यह विद्या शुक्राचार्य को सिद्ध थी। इस विद्या के प्रभाव से वे मरेहुऐ ईन्सानको पूर्नजीवीत किया करते थे l
वस्तुतः तन्त्र ग्रंथों में संजीवनी विद्या का वह विधान लुप्त है, जिससे संजीवनी विद्या सिद्ध होती थी और मृत को जीवित बनाने की शक्ति रखती थी। सम्प्रदाय - भेद से वर्तमान तन्त्र ग्रन्थों में कई प्रकार के संजीवनी मन्त्र हैं और उन के भिन्न-भिन्न विधान हैं।
वस्तु तत्त्व का बोध न होने से यह विद्या अपने मूल रूप में अब किसी को अधिगत नहीं होती है। मरे हुए आदमी को जीवित करने की बात यदि छोड़ दें, तो वह अनुभव सिद्ध है कि उक्त संजीवनी मन्त्र का जप, अनुष्ठान से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है, मरणासन्न असाध्य रोगी आरोग्यता प्राप्त कर दीर्घायु होता है।
संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
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