दत्तप्रबोधिनी न्यासद्वारा यह माँ काली मन्त्र सभी प्रकार के दुःखों का निवारण कर अभीष्ट-सिद्धि प्रदान करता है।

 

अत्यंत महत्वपुर्ण सुचना : 

सभी तंत्रयामल क्रीयाऐं सद्गुरु मार्गदर्शन में सहभागी होकरही अपनें जीवनमें प्रयुक्त करें l
  • मूल मन्त्र :  ॐ क्रीं क्रीं क्रीं  हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं
  • दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।

साधक को चाहिए कि मन्त्र के अन्तर्गत महाकाली का ध्यान करते हुए  मंत्र का जप करे।


कालीमन्त्र में आए हुए वर्णों का अर्थ इस प्रकार है


जलरूपी 'क' मोक्षदायक है।  अग्निरूपी 'रेफ' सर्वतेजोमय है।

क्रीं क्रीं क्रीं  ये तीनों बीजाक्षर सृष्टि, स्थिति,  प्रलय के प्रतीक हैं।  इनका बिन्दु मुक्ति प्रद है और हुँ हुँ ये दोनों बीजाक्षर ज्ञानप्रद है।  ह्रीं ह्रीं ये दोनों बीजाक्षर सृष्टि,  स्थिति,  प्रलय करने में समर्थ हैं।  दक्षिणकालिके सम्बोधन शब्द है।  यह सम्बोधन भगवती महाकाली का सान्निध्य प्राप्त कराने का बोधक है और स्वाहा शब्द उच्चारण करने मात्र से सब पापों का क्षय करता है।

साधना प्रारंभ करने से पूर्व क्रीं बीज का तीन बार उच्चारण करते हुए तीन बार आचमन करना चाहिए।  तदनन्तर ॐ काल्यै नमः ॐ कपाल्यै नमः दो बार कह कर दोनों ओठों का मार्जन करे,  फिर कुल्यायै नमः कह कर हस्त प्रक्षालन करे।  तदनन्तर ॐ कुरु कुल्यायै नमः से मुख, ॐ विरोधन्यै नमः से दाहिनी नासिका,     ॐ विश्वचित्तायै नमः से वाम नासिका,  ॐ उग्रायै नमः से दाहिनी आँख,  ॐ उग्र प्रभायै नमः से बाईं आँख,  ॐ दीप्तायै नमः से दाहिना कान,  ॐ नीलायै  नमः से बायाँ  कान,  ॐ धनायै नमः से नाभि,  ॐ बलाकायै नमः से हृदय,  ॐ मात्रायै नमः से मस्तक,  ॐ मुद्रायं नमः से दाहिना कन्धा और मितायै नमः से बायाँ कन्धा स्पर्श करें।



इसके बाद तत्वशुद्धि और भूत शुद्धि करके प्राणायाम करे।  ह्रीं इस एकाक्षर बीज को १६ बार जपते हुए पूरक प्राणायाम ६४ बार जप कर कुम्भक प्राणयाम और ३२ बार जप करके रेचक प्राणायाम करना चाहिए।  इस विधि से तीन बार प्राणायाम करना चाहिए।  तत्पश्चात् दत्तप्रबोधिनी न्यास से विनियोग करे--

विनियोग : अस्य कालीमन्त्रस्य भैरव ऋषिः,  उष्णिक् छन्दः,  दक्षिण कालिका देवता ह्रीं बीजम् क्रीं कीलकम् ,  हुँ  शक्तिः,  सर्व पुरुषार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास--  शिरसि भैरव ऋषये नमः।  उष्णिक् छन्दसे नमः हृदय।। दक्षिण कालिकायै देवतायै नमः गुह्ये।  ह्रीं बीजाय नमः पादयोः।  हुं शक्तये नमः मुखे।  क्रीं कीलकाय नमः सर्वांगे।

कराङ्गन्यास -- ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।  ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।  ॐ हूँ मध्यमाभ्यां नमः।  ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां वषट्।  ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।  ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां अस्त्राय फट्।

षडङ्गन्यास--  ॐ क्रां ह्रदयाय नमः।  ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा।  ॐ क्रूं शिखायै वषट्।  ॐ क्रैं कवचाय हुं।  क्रौ नेत्रत्रयाय वौषट्।  ॐ क्रां अस्त्राय फट्।

वर्णन्यास--  ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृं नमः हृदि।  ॐ एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं नमः  दक्षिण बाहौ।  ॐ ङं चं छं जं झं त्रं टं ठं डं ढं नमः वाम बाहौ।  ॐ णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमः दक्षिण पादे।  ॐ मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं नमः वामपादे।




मातृकान्यास
  • १.  ॐ अं ॐ ललाट - सब मातृका वर्णों का मातृका न्यास करे।
  • २.  अं ॐ अं आं ॐ आं - ललाट आदि मातृकान्यास स्धानों में न्यास करे।
  • ३.  श्रीं अं श्रीं - ललाट आदि मातृकान्यास आदि स्धानों में न्यास करे।
  • ४.  अं श्रीं अं -  ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करे।
  • ५.  क्लीं अं क्लीं - ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करे।
  • ६.  अं क्लीं अं -  ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करे।
  • ७.  ह्रीं अं ह्रीं - ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करें।
  • ८.  अं ह्रीं अं - ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करें।
  • ९.  क्रीं क्रीं ऋं ऋृं लृं लृं क्रीं क्रीं अं क्रीं क्रीं ऋं ऋृं लृं लृं क्रीं क्रीं नमः का ललाट आदि मातृका न्यासों में न्यास करें।
  • १०.  अं क्रीं क्रीं ऋं ऋृं लृं लृं अं नमः  का ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करे।
  • ११.  क्रीं अं क्रीं  का ललाट आदि मातृका न्यास स्धानों में न्यास करे।
  • १२.  अं क्रीं अं का ललाट आदि मातृका न्यास स्थानों में न्यास करे।
  • १३.  क्रीं हं क्रीं का विलोम क्रम से मातृका न्यास स्थानों में न्यास करे।
  • १४.  हं क्रीं हं का विलोम क्रम से मातृका न्यास स्थानों में न्यास करे।
  • १५.  उपर्युक्त २२ अक्षरों के क्रम में मूल मन्त्र से १०८ बार व्यापक न्यास करे।  तदनन्तर तत्त्व न्यास,  बीज न्यास करे।

तत्त्व न्यास -- क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं ॐ आत्मतत्त्वाय स्वाहा।  इस मन्त्र से पैर से नाभि तक न्यास करे।

दक्षिण कालिके ॐ विद्यातत्त्वाय स्वाहा -- इस मन्त्र से हृदय से लेकर मस्तक तक न्यास करे।

बीजन्यास-- ब्रह्मरन्र्धे क्रीं नमः। भ्रू मध्ये क्रीं नमः।  ललाटे क्रीं नमः।  नामौं हुँ नमः।  मुखे ह्रीं नमः।  सर्वाङ्ग ह्रीं नमः।

तदनन्तर मूल मन्त्र से सात बार व्यापक दत्तप्रबोधिनी न्यास करके श्री महाकाली का ध्यान करे।  ध्यान के बाद मूल मन्त्र का जप रुद्राक्ष की माला से करे।  नित्य नियम,  संयम और विधिपूर्वक १०८ बार मूलमन्त्र का जप करते हुए जब २१००० जप संख्या पूरी हो जाए तो जप संख्या का दशांश हवन किया जाए।  इस विधि से काली मन्त्र सिद्ध हो जाता है।

संपर्क : श्री. कुलदीप निकम 
Dattaprabodhinee Author )

भ्रमणध्वनी : +91 93243 58115
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