
तन्त्रशास्त्रों के अतिरिक्त वेदों में, पुराणों में और महाभारत में इसका उल्लेख और सिद्धि विधान मिलता है। स्तम्भनक्रिया तीन प्रकार की होती है
मन्त्र साध्य, ओषधि साध्य और इन्द्रजाल साध्य। क्रम से ये तीनों भेद उत्तम, मध्यम और अधम माने गए हैं। किसी भी वस्तु, व्यक्ति को स्तम्भित करना, निश्चेष्ट, स्थिर करना स्तम्भन है।
तन्त्रों में शान्ति, वश्य, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन और कीलन ये छह कर्म हैं।
इन षट्कर्मों में से प्रत्येक कर्म के देवता हैं
रति, वाणी, रमा, ज्येष्ठा, दुर्गा और काली-षट्कर्मों की सिद्धि के लिए इनका पूजन होता है। स्तम्भन क्रिया की देवी 'रमा' हैं। इस क्रिया को सिद्ध करने के लिए 'रमा' के पूजन का विधान है। स्तम्भनक्रिया की सिद्धि के लिए शिशिर ऋतु, पौर्णमासी तिथि, पश्चिम दिशा श्रेष्ठ मानी गई है।।
पूजन काल में स्तम्भन की 'गदा' मुद्रा का भी संकेत प्रदर्शन करने का विधान है। इसके अतिरिक्त मातृका न्यास, अंग-न्यास, कर न्यास, भूत शुद्धि, तत्व शुद्धि आदि भी आवश्यक हैं।
स्तम्भन क्रिया की सिद्धि दो प्रकार से की जाती है- एक तो यन्त्र बना कर उसका पूजन, दूसरे मन्त्र का जप, अनुष्ठान। फेत्कारिणी तन्त्र में शत्रु के मुख को स्तम्भित करने का मन्त्र यह है--
ॐ शत्रुमुखस्तम्भनी कामरूपा आलीढकरी हिं फ्रें फेत्कारिणी मम शत्रूणां मुखं स्तम्भय मम सर्वविद्वेषिणं मुखस्तम्भनं कुरु कुरु ॐ हूँ फ्रें फेत्कारिणी स्वाहा।'
अग्नि स्तम्भन का मन्त्र हैॐ ह्यं अग्निस्तम्भनं कुरु कुरु ।
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संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
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