महाराष्ट्रियन साधकों के दैनिक पठन में श्री ज्ञानेश्वरी, श्रीमत दासबोध, श्री शिवालयमृत, सप्तशती, एकनाथी भागवत, मन के श्लोक, भागवत और रामायण के साथ-साथ श्री गुरुचरित्र पठन का भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। श्री गुरुचरित्र यह एक सिद्धमंत्ररूप और महाप्रसादिका ग्रन्थ है।
भक्ति मार्ग या नामजाप के मार्ग में स्वकर्मच्युती (खुद के कर्मो की अधोगति) यह शास्त्रोक्तदोष जिसे समाप्त करके जनता को स्वकर्म की जगह अभियुक्त करके भक्तिप्रणव बनाने के लिए और अन्तःकरण में त्याग तथा निर्भयता का निर्माण करने के लिए श्री गुरुचरित्र का अवतार हुआ है
यह सिद्ध ग्रंथ अन्तःकरण से पठन करना फायदेमंद साबित होता ही है, लेकिन अगर इसे साप्ताहिक आधार पर पढ़ा जाए, तो यह तुरंत फल (लाभ) देता है। साधकों का ऐसा अनुभव है। सकाम पाठकों को तकनीक का पालन करना चाहिए।
" अंतःकरण असता पवित्र l सदाकाळ वाचावें गुरुचरित्र ll"
यह आदेश भक्तीप्रेमसे पठन करनेवाले निष्काम साधकों के लिए ही है।
श्री गुरूचरित्र का स्वरूप सिद्धमुनी और नामधारक के बीच में है, और इसमें सात हजार से अधिक दोहे हैं। यह इहलौकिक और पारलौकिक शक्ति प्राप्त करने का सबसे श्रेष्ठ मार्ग है।
श्री गुरुचरित्राके साप्ताहिक पाठ की पद्धती...!
यदि आप सात दिनों में श्री गुरुचरित्र पढ़ना चाहते है तो हर दिन पठन के लिए 53 अध्यायों वाली पोथी का क्रम इस प्रकार है।
9/21/29/35/38/43/53 ...52 अध्यायों की पोथी का क्रम इस प्रकार है। 7/18/28/34/37/42/51
यदि आप तीन दिनों में श्री गुरुचरित्र पढ़ना चाहते हैं, तो आपको पहले दिन 24 पूर्ण, दूसरे दिन 37 पूर्ण और तीसरे दिन पूर्ण 53 ऐसा क्रम रखें। एक दिन में भी समग्र श्रीगुरुचारित्र पढ़नेवाले साधक है। पोथी पढ़ते समय गुरुवार को मृतसंजीवनी अध्याय नहीं पढ़े जाने चाहिए।
आम तौर पर, श्री गुरुचरित्र का पाठ के पठन का आरंभ शनिवार को शुरू करना चाहिए और शुक्रवार को समाप्त होना चाहिए। क्योंकि शुक्रवार यह वार श्रीपाद श्रीवल्लभ जी का निजनंदगमन का दिवस है। अन्यथा, भक्ति भाव का निर्माण होता है तो इसे कभी भी पढ़ा जा सकता है। मुहूर्त, दिन आदि देखने की कोई जरूरत नहीं है। पोथी पढ़ते समय, नियमों का पालन करना महत्वपूर्ण है।
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विशिष्ट संकल्पनाओं की पूर्ति के लिए श्री गुरुचरित्र सप्ताह पठन का अनुष्ठान करना निश्चितरूप से फलदायी है। सप्ताह के लिए एकांत जगह का चयन करें। पढ़ने से पहले दत्तमूर्ति के सामने पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठिये। दत्तमूर्ति हमारे बाईं या दाईं ओर होनी चाहिए ऐसे बैठिये। साथ ही अपने दाहिने तरफ एक खाली आसान भी रखें। यदि दत्तमूर्तिनहीं हैं, तो पाट पर (पीढ़े पर) साबुत चावल (टूटा हुआ नहीं) ,रख कर उसपर सुपारी को रखें और सुपारी रखे हुई जगह पर महाराज जी का आवाहन करें।
सप्ताह पठन से पहले से विधियुक्त संकल्प जारी करें। उन सात दिनों के दौरान, ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिए। शाम को उपवास करना चाहिए। हो सके तो शुचिर्भूत होकर ही पठन करें.। रात के देवता के पास जमीन पर चटाई पर सो सोइए। बाईं करवट पर सोने से संकल्पपूर्ती के संदर्भ में संदेश सुनाई देते हैं।
सप्ताहवाचन के अंत में (पूरा होने के पश्चात), सुपारी में से दत्त महाराज को विसर्जित करें (सुपारी में दत्त महाराज है यह समझकर)। पठन करने के लिए बैठने के बाद बीच में से आसान छोड़ कर उठना नहीं है। उस समय अन्य लोगों से बात न करें। सप्ताह पाठ के दौरान हविष्यान्न लिया जाना चाहिए। सप्ताह में सातों दिन प्रातःकाल काकड़ आरती, शाम को प्रदोषारतीऔर रात में शेजारती की जानी चाहिए। दोपहर में महापूजा में पोथी की पूजा करते वक्त संभव हो तो महानैवैद्य में (घेवड़ा) की सब्जी होनी चाहिए।
वाचन स्पष्ट होना चाहिए ... बेवजह जल्दी निपटाने की हड़बड़ी में पाठ नहीं किया जाना चाहिए। स्थूल अक्षरों में से व्यक्त होनेवाले तत्व पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है ...!
श्री गुरुचरित्र का संक्षिप्त पाठ ....!
सबसे पहले, "पारायण" करना यानी वास्तव में क्या करना है, यह सवाल कभी भी दार्शनिक साधकों द्वारा नहीं पूछा गया है या उल्लेख ही किया गया है। आज हमने इतने पारायण किए यानी इतने आंकड़ों तक पहुंचे यह महत्वपूर्ण है, या कि हमने जो योगिक गतिविधि हासिल की है और उसकी गहराई महत्वपूर्ण है ...! यह सवाल हमेशा मुझे पड़ता है।
श्री गुरुचरित्र सिद्धमंत्रग्रंथ यह पाँचवा वेद है। इस गुरुतत्व के अपेक्षित सत्व फलीभूत होने के लिए पहले सभी अपेक्षित मानसिक और शारीरिक पूर्वतैयारियां होना महत्वपूर्ण है ऐसा मुझे लगता है।
"पारायण" शब्द का वास्तव में क्या अर्थ है ...?
पारायण यह शब्द "आत्मपरायण" तत्वकी अभिव्यक्ती है। "पारायण" का आ+परा+आयण ऐसा अर्थ होता है। इसमें "आ" का अर्थ है नारायण में का "आ" स्वरशक्ति। "परा" हमारे शरीर में नाभिवाणी या नारायण की वाणी है जो पश्यंती के आगे स्थित है और निगम वाणी के पहले है। "आयण" का मतलब आवाहन करना है।
पारायण का मतलब नारायण के परावाणी का आवाहन यह होता है।
श्री गुरुचरित्र के पारायण करने की अभिव्यक्ति इतनी भी समझना के लिए सरल नहीं है।
श्री गुरुचरित्र के पारायण करने से पहले "श्रीगुरुचरित्र" इस षडाक्षरी तारक मंत्र का अर्थ समझने की प्राथमिकता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए। एक विशालकाय वृक्ष के अस्तित्व की शुरुआत एक बीज से शुरू होती है। उसी तरह श्रीगुरूचरित सिद्धग्रंथ का अवलोकनात्मक अध्ययन सबसे पहले षडाक्षरी नाम से ही करना योग्य है ...!
"श्री गुरुचरित्र" इस शब्दब्रम्ह का अर्थ यह है कि हे परब्रह्म यतिराज श्रीपाद श्रीवल्लभ सद्गुरु महाराज, मेरे अज्ञानरूपी अंधकार का समूल नाश करके मेरे दास्यभक्तियुक्त आचरण को पवित्र और चरित्रसंपन करें।
साप्ताहिक वाचन में अथवा महाराज की दत्तउपासना में "सात" इस संख्या का विशेष महत्व है। सदगुरु शिष्य परंपरा के अनुसार, 7 यह संख्या दास्यभक्ति के अनुसार है। शरीर में स्थित सप्तपाताल और षटचक्र + सहस्त्रार संपूर्ण सात चक्रों के अनुसार होते हैं।
श्री गुरुचरित्र का पाठ अंतर्मुखी होकर करने से आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है और संकल्पयुक्त बहिर्मुखी होकर करने से इहलौकिक वैभव की प्राप्ति होती है।
संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
( Dattaprabodhinee Author )
भ्रमणध्वनी : +91 9619011227
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