संसारीक लोंगों के लिऐं अनुभवसिद्ध ऐवं आसान ध्यानसाधना - १


जीवन कें संग्राममें जिंदगीकीं भागदौड में मनुष्यको अपनें दिनभर कीं व्यस्त और नियोजित समयसारणी के चलते, समय के आभाव कें कारण उपसाना ध्यान, योगसाधना कर पाना संभव नही l ईसी लिऐं दैनिक कर्म ऐवं व्यवहार को बाधा पोहोचाऐं बीना ही, किं जानें वाली तीन साधनांओं मे से एक साधना कों दत्तप्रबोधिनी सेवा ट्रस्ट के माध्यमसें ध्यान योग से प्रस्तुत कर रहे है l जिससें आपको दैवी शक्ती का अनुभव सहजही प्राप्त होगा l

ईन साधनाओं पर परिपुर्ण विश्वास ऐवं श्रद्धा रखकर साधकोंद्वारा दैवी सान्निध्यका आनंद अनुभव करणे हेतु ईन साधनाओं को प्रकट कर रहा हुं l यह साधना बहुतही आसान ऐवं सहज सरलता से कर सकतें है l




जरूरी सुचना

यह साधना करनें की कालवधी में अपने सद्गुरु महाराज या अपनेँ ईष्ट का स्मरण करना बहुत ही लाभकारी है l मन मैं किंतु परंतु या तील समान भी संदेह न रखें l अपना दैनंदिन जीवन अपनें आत्मसमर्पण के माध्यमसें सद्गुरु महाराज ( भगवान ) के अधीन होकर ही हम सब का आत्मोद्धार होगा l ईसी आशा से यह सहज साधना प्रकाशित कर रहा हुं l कृपया ईस साधना की कालावधीं मे अपना स्वभाव सकारात्मक रखे l


साधना क्रमांक १ ध्यान धारणा

ईस साधना की शुरवात कभी भीं कर सकते है l सामान्य रुपसे एक से पंधराह तारीख या अमावस्यासें पुर्णिमा एसा रखीयें तो सर्वोत्तम रहेगा l यह साधना पहले सिर्फ पंधराह दिन तक करकें देखीऐं l स्व अनूभवसें आगे बढ सकतें है l

पहलें दिन ऐसी सोच रखीयें की, ' मैं आज से पंधराह दिन तक कोई भी संकल्प या विकल्प नही करुंगा, ' यह होना चाहीऐ ' या ' यह नहीं होना चाहीऐ ' ऐसी सोच भी मनमें नही रखुंगा l मेरा जीवन ईश्वर के अधीन है l वो जैसे रखेंगे वैसे ही रहुंगा l उस कें बाहर नही जाऊंगा l मेरी सारी चिंताऐं, डर, परेशानियाँ ईश्वर की चरणोंमें रखकर मे कर्मोंसे भलीभांती मुक्त हो चुका हुं l बीतें हुऐं समय को याद नहीं करुंगा और नाही कलकी चिंता करुंगा l वह सब ईश्वर कें अधीन है l कार्यसिद्धी के लिऐ ऐवं अपनी ईच्छ्यांऐं पुरी होनेके लिऐ मेरी आसक्ती व्यर्थ है l परमेश्वर जैसा मेरा जीवन लिख रहें है वही मेरे जीवन के लिऐ सर्वतोपरी श्रेष्ठ और पोषक है l ऐसी ही सोच रात दिन रखनी है l

ईसका मतलब आप निष्क्रिय हो जाओ ऐसा नही है l आप आपना काम, कोशिश तथा कर्म करते रहीऐ किंतु यह कार्य और कोशीश आप का संकल्प नही बल्की ईश्वरी प्रेरणा व संकल्प है l ऐसी धारणा रखीऐं l

ईसीका नाम " कर्मण्येवाधिकारस्ते अस्तु "  ईसी अवस्था में जीवन में आने वाली कठीणाईया दुर हो जाती है l आप अपना जीवन परमेश्वर के अधीन रखेंगे तो क्या नहीं होगा ? अनुभव लें कर देखिऐ. 

संत कबीर गुरु साहेंब कहतें है....

दुख में सब सुमिरन करें l सुख में करें ना कोय ll
जो सुख सुमिरन करें l दुख काहे को होय ll

संपर्क : श्री. कुलदीप निकम 
Dattaprabodhinee Author )

भ्रमणध्वनी : +91 9619011227 
Whatsapp Or Sms Only )

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