इन ९ कारणोंसे पहचाने आपके घरमें प्रखर पितृदोष - जरुर पढे़

आध्यात्मिक ज्ञान के अनुसार और आधुनिक विज्ञान से भी परे, हमारे जीवन में 50% समस्याएं केवल आध्यात्मिक कारणों से होती हैं और 30% आध्यात्मिक, मानसिक / शारीरिक कारणों से होती हैं। और 20% मानसिक / शारीरिक कारणों से होती हैं।



हमारे जीवन में दुखों का मूल आध्यात्मिक कारण मृतक पूर्वजों की अतृप्ति और उसके कारण वंश (कुल) पर पड़नेवाला दुष्प्रभाव हैं।


पितृदोष के कारण होनेवाले हनिकारक परीणाम निम्नलिखित हैं।

पितृदोष के कारण  हमें हमारे सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक पूजा अर्चा में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि पूरा परिवार गहरे अंधकार में  डूबा हुआ है।  हम कितने भी उपाय कर लें कोई फर्क नहीं पड़ता हैं, कोई संतोषजनक समाधान नहीं दिखता है, उल्टा बहुत सारा पैसा और समय खर्च करने के बाद भी फिरसे उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ा हैं।


दैनिक जीवन में पितृदोष के लक्षण इस प्रकार दिखाई पड़ते है

1। शादी नहीं हो रही है

विवाह का संपन्न होना परिवार  के (कुल) और गांव के देवी-देवताओं की कृपा पर आधारित होता हैं । पितृदोष के कारण आमतौर पर देवताओं  का आशीर्वाद नही मिलता है  जिसके कारण  शादी तय करने में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न होती हैं।


2। वैवाहिक जीवन मे अशांति।

कुछ मामलों में  विवाह उपरांत विवाद देखे जाते हैं। इनके  मानसिक, शारीरिक, वित्तीय, सामाजिक या आध्यात्मिक कारण हो सकते हैं। पितृदोषों के बाद, वैवाहिक अशांति का कारण वास्तु दोषों से  भी जुड़ा हुआ है। यह देखा गया है।

3। नशा (औसतन 70% लतों (आदतें, व्यसनों) का कारण पितृदोष होता है।

पितृ  घर के बाथरूम, शौचालय और रसोई में स्थित होते हैं। हम उनके अस्तित्व को नकार नहीं सकते। घर में तनावपूर्ण स्थिति और नकारात्मक कईं और कंपन भी होते हैं।  पूर्वजों में से शराब पीने की आदत के कारण  मृत  होने वाले पितरों की वजह से भी घरमें रहने वाले सदस्यों को तकलीफों का सामना करना पड़ता है।


4। बच्चों को पढ़ाई करने के बाद भी परीक्षा के समय कुछ भी याद ना आना।

छोटे बच्चों का और पितरों का संबंध बच्चे अर्भक अवस्था में होते हैं तभी से प्रस्थापित होता है।  बुद्धि और याददाश्त का वक्त पर साथ ना देने के कई और कारण भी हो सकते है।


5। नौकरी नहीं टिकती।

जीवन में पांच तरह की स्थिरता होना जरूरी है। उनमें से एक वित्तीय पक्ष एक, आध्यात्मिक स्थिरता और अपराध-मुक्त (दोषमुक्त) दैवीय समर्थन प्राप्त करने के लिए सद्गुरु को शरणागत होना महत्वपूर्ण है ...!


6। गर्भधारण में समस्या।

जिस तरह घर में  पितरों का वास होता है। उसी तरह हमारे शरीर में  हमारे पेट में भी पितरों का अचल स्थान होता है। दोषों को देखते हुए समय पर  ठीक से सही इलाज होना महत्वपूर्ण है..!


7। गर्भपात।

सभी घरानों में पूर्वजों की संख्या हजारों की तादाद में होती है। उनसे होने वाली असहनीय वेदनाओं का परिणाम भौतिक पीढ़ी को प्रभावित करता रहता है। इसीलिए संबंधित घराना  बहुत से समस्याओं से पीड़ित रहता हैं। भाग्य का भी गहरा संबंध इससे है।

गर्भपात के अन्य कारण भी हो सकते हैं। आध्यात्मिक स्तर पर,  पितरो में से गृहस्थ पिशाच ही गर्भपात का एकमेव कारण होता है।


8। बच्चों का मानसिक या शारीरिक तौर पर अपंग होना।

पितरों की पिशाच बाधा की पीड़ा 90% महिला वर्ग, अर्भक (शिशुओं को) और 12 साल की आयु तक के छोटे बच्चों को अधिकतर भुगतनी पड़ती है।  इस आत्मविकारी स्थिति का मुकाबला करने के लिए सक्षम सद्गुरु सेवा करना महत्वपूर्ण है।


9। बच्चों की समय से पहले मौत। ( बच्चों की अकाल मृत्यु )

समय से पहले मृत्यु एक बहुत ही संवेदनशील विषय है और इस संबंध में सीधे चर्चा की जानी चाहिए। यहां इसकी पूरी विस्तृत जानकारी देना संभव नहीं हो सकता है। ( काफी कुछ बातें यहाँ पर लिखी नहीं जा सकती,  इसके संदर्भ में सामने बैठ कर चर्चा करें )

इनमें से गर्भपात और बच्चों की अकाल मृत्यु   (समय से पहले मौत ) का होना इन समस्याओं को पितृ दोष के साथ साथ प्रारब्ध से भी जोड़ कर देखा जाता है।

बौद्धिक स्तर पर, हम दो सामान्य नियमों का उपयोग कर के यह अनुमान निश्चित कर सकते है कि संबंधित दुःख (पीड़ा) आदिभौतिक है या आदिअध्यात्मिक।


नियम इस प्रकार हैं

  • 1। जिस समस्या को हल करने के सभी आधुनिक विज्ञान साधन विफल हो रहे हैं। उदाहरण के लिए। सीने में दर्द। हाथ और पैरॉ में  झुनझुनी आदि.....
  • 2। एक ही  परिवार के कई सदस्यों का समान पीड़ा से पीड़ित रहना।

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