श्री कालभैरव भगवान दस भैरवों के अधिपति है। त्रिदेवों के चरणों समीप आदिशक्ती विराजमान है। आदिशक्ती दुर्गा माँ के अनुचर श्री कालभैरव भगवान है। श्री कालभैरव भगवान के अधीन काल और समय हैं। काल और समय के अधीन नियति है। यह सब सद्गुरु के अधीन हैं और श्री कालभैरव भगवान सद्गुरु के दास हैं। जगन्नियंता भगवान शिवजी की यह प्रलयंकारी दाहिनी भुजा है। उनका महिमा धर्म के तथाकथित ठेकेदारों ने उजागर नहीं किया और उसे छिपा कर रखा है। यह भगवान जिनका वज्रदाढ़ दंत निलवर्णीय है। जिनकी काया सबसे बड़ी है। जो हर युग का अंत करनेवाले है। ऐसा यह श्यामवर्ण भैरव जिसका स्मरण करके हर कार्य की शुरुआत की जाती हैं।
कालभैरव साधनाद्वारा प्रकृतिगर्भ में मानव जाती को ग्रसित करनेवाले पितृदोष, नजरदोष, ग्रहबाधा, शत्रुबाधा, भूतप्रेत पिशाच्चबाधा, जादु टोना, भानामती, तथा इंद्र, कली, मायानिर्मित संकटों की श्रृंखला से मुक्ति मिलती है।। मोह माया का तोड़ सिर्फ श्री कालभैरव चरणही है। वें महारूद्र है इसीलिए उन्हें आदिपुरुष भी कह सकते हैं।। इनकी कठोर साधना साधक को सभी दैत्य, पिशाच्च शक्तियोंपर एकल हुकूमत दिलाती है l पर साधक की उतनी पात्रता होनी चाहिये। यह दैविक विधिलिखित भी रोक सकते है। श्री कालभैरव भगवान शैतानी शक्तियों को भी नचाने वाले एकही ज्वलंत देव हैं। यहाँ विवेकशील संयमी और पारदर्शी चारित्र्य ही प्राथमिक पात्रता, यहाँ व्याभिचार, धोखाधड़ी और मुर्खता को कोई जगह नहीं है। ऐसे लोगों के लिए श्री कालभैरव अभिशापित देवता हैं। मृत्यु से भी भयानक हैं। इसके विपरीत सद्गुरु के सेवकों के लिए वें प्रेम भाव से लिप्त और भक्तवत्सल हैं। वें घरके वास्तुपुरुष से लेकर कुलदेवता के दैत्यमुख तक किसी को भी कहीं भी और कैसे भी एक क्षण में समाप्त कर सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी भैरव यातनाओं को सहा है। इनके निर्व्याज साधनासे खोया हुआ आत्मविश्वास फिरसे प्राप्त होता है। मन मे भय नहीं रहता। अंदरूनी सोच को ताकत मिलती है।। जीवन का दृष्टिकोण विशाल बनता है। शैतानी शक्तियों से आत्मरक्षा होती है। अंतर्बाह्य शत्रु की पकड़ से मनुष्य दूर चला जाता है। आध्यात्मिक जीवन में रुचि बढ़ती है। कठिन कार्य सहज ही पूर्ण होते है। अपने जीवन पर अपना एकाधिकार (वर्चस्व) प्राप्त होता है। काली माता का साधना योग प्राप्त होता है। सद्गुरू कामधेनु है। श्री कालभैरव तत्व सद्गुरू के अधीन होने के कारण सद्गुरू यौगिक सूक्ष्म हस्तपादुका माला से ; दश भैरवोंकी जाप साधना करनेसे सभी तरह की लक्ष्मींकी प्राप्ति होती है। पर श्री कालभैरव की ओर से गलतियों को माफी नहीं है।
श्री कालभैरव भगवान ने मृत्यु, देवराज इंद्र, ब्रम्हदेव, नृसिंहदेव और विष्णु गर्वहरण किया है। लोगों को तो छोड़िए साधुओं और योगियों से भी इनका अध्ययन नहीं हो पाया है। श्री कालभैरव भगवान मोक्षप्राप्ति के लिए ' श्री दत्त अधिष्ठान ' हृदय में तैयार करते हैं।। श्री कालभैरव भगवान की साधना स्वाधिष्ठान को जागृत कर सद्गुरू के पास और इसी के साथ दत्त महाराजजी के पास जानेका मार्ग प्रदान करता है। यह मार्ग बहोत ही कठिन, जिगर होगा तभी मार्गक्रमण कर सकते है। शनिदेव यह कालभैरव भगवान के सबसे बड़े भक्त कहलाते है।। श्री कालभैरव भगवान की आरती रामदास स्वामीजी ने लिखी है, पर वह अब ढूंढने से भी मिलती नहीं है। उसे जनविस्तार भय के कारण प्रसिद्ध नही किया गया।
श्री कालभैरव भगवान जितने सिद्ध योगियों के है उतने ही महाचंडालोंके भी है। इसीलिये प्रामाणिक और पारदर्शी बने रहें। श्री कालभैरव भगवान सूक्ष्म देह में बसनेवाली वासना के कर्म नष्ट करते हैं। कालभैरवोंको क्षेत्रपाल भी कहते है। क्षेत्र यानी शरीर और पाल यानी पालन करनेवाला, वो कर्म और अकर्म के बंधनों से छुड़ाता है। ॐ कालभैरवाय नमः यह भगवान का जापमंत्र है। जिसका दत्तप्रबोधिनी संस्था के सामुदायिक आध्यात्मिक उबंटू साधना करते समय जाप किया जाता हैं। जाप के लिए रूद्राक्ष माला का इस्तेमाल किया जाता है। स्फटिक माला से भी जाप कर सकते हैं। महिलाएं भी यह जाप कर सकतीं है। भगवान के सामने स्त्री - पुरुष यह भेद नहीं रहता।
भैरवप्रहर रात्रि 12 से सुबह 3 बजे का है। इस प्रहर मे भैरवसाधना अधिक प्रभावी और परिणामकारक सिद्ध होती है। तप, जाप, और ध्यान मार्ग में अग्रेसर होते समय प्रथमदर्शनी बाह्य आवरणात्मक शुद्र शक्ति विविध रुपों और स्वरूपों द्वारा साधकको भटकाव उत्पन्न कराते है। यह बहोत ही भयानक मायाजाल है। इसमें से सहज योग्य मार्ग तद्रूप शक्ति कभीभी ढूंढने नहीं देती। इसे आंतरिक भुलभुलैया कहते है। इस धोकें से साधक को बचाते है कालभैरव भगवान।
उनकी सेवा करना मृत्युपर विजय प्राप्त करने की सुवर्णसंधि है। पंचमहाभूतों के पार शिवत्व है। श्री कालभैरव की सेवा अगर करते है तो शिवजी की साधना करने की आवश्यकता नहीं है। वह अपनेआप साध्य हो जाती है। श्री कालभैरव भगवान के प्राचीन मंदिर में जाने के बाद भगवान की मूर्ति को एकाग्रतासे देखते रहिये। सात्विकता आँखोंमें भर जाएगी। भैरवो्थान केवल पद्मासन में ही साध्य होता है। मोरगांव के गणेश मंदिरकी ग्यारह सीढ़ियां ग्यारह भैरवों के प्रतीक हैं।
- 1) प्रमुख - श्री कालभैरव
- 2) उप प्रमुख - बटुकभैरव
- 3) समायोजक - स्वर्णाकर्षण भैरव
- 4) स्मशानभैरव
- 5) नग्नभैरव
- 6) मार्तण्डभैरव
- 7) कपालभैरव
- 8) चंडभैरव
- 9) सनहरभैरव
- 10) क्रोधभैरव
- 11) रुद्रभैरव
श्री कालभैरव पातालवासी है। उन्हें दक्षिणेश्वर भी कहते है।। नक्षत्र उनकी आज्ञा का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। उन्हें प्रसन्न करलिया तो नक्षत्रों का शुभ फल आप की जेब में। श्री कालभैरव भगवान की आज्ञा के बिना किसीभी सूक्ष्मक्षेत्र ( गुप्त काशी ) में प्रवेश नहीं मिलता। अगर नकारात्मक ऊर्जा दिमाग में और शरीर में महसूस होने लगे तभी लगातार 6 महीने तक श्री कालभैरव साधना करना लाभप्रद रहेगा।। उनकी साधना निर्गुणो में सरस बलशाली बनाती है। आध्यात्मिक प्रगति के लिए सगुनमे से निर्गुण तक अनासक्ति से प्रदार्पण आवश्यक है। श्री कालभैरवजी का ध्यास बिना किसी शर्त या बिना किसी स्वार्थ के किया जाना चाहिए। उनका ध्यास लगे तो कर्तव्यनिष्ठा भी रखनी पड़ेगी। अनियमित साधना वृत्ति रखनेसे वें भाव नहीं देंगे। उसके ऊपर अगर ज़बरदस्ती अथवा मनमानी करोगे तो रहिसहि सुखशांति भी खो दो गे।। यहाँ कभीभी मानस स्तरीय खेल और अवहेलना नही करनी चाहिए। हमेशा जितना हो सके उतना दत्त साधना में लीन होने का प्रयास करें।
श्री कालभैरव भगवान की अनुभूति मिलना यह एक आत्ममार्गकी शुरूवात है इस बात की पुष्टि करता है। श्री कालभैरव दरबार में आए बगैर नसीब के चक्र नहीं घूमते है।। बाकी सब देवी देवता देखते रहते हैं। लेकिन भैरवनाथ उनको भक्तोंको सदैव तात्काल घोर कष्टोंसे मुक्ती दिलाने वाले है ।। मन, हृदय और नियती साफ होनी चाहिए। सद्गुरू भक्ति सुखदुख के परे जाती है तो भगवान सदभक्त को जीवन के आपातकालीन स्थिति में उबारते है। आध्यात्मिक जीवन में घोर साधना सात्विक वैराग्यपूर्ण और सद्गुरू अधिष्ठानयुक्त होती है। यें साधना सहज समाधी के अंतिम धेय्य तक लेकर जाती है।
संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
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भ्रमणध्वनी : +91 9619011227
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