मूलाधार चक्र शुद्धि और दैनिक आध्यात्मिक साधना


 

सांसारिक व्यक्ति को अगर रोज़मर्रा की भागदौड़ में ईश्वर की उपासना के लिए थोड़ा भी समय नहीं मिलता, तो क्या उसे उपासना नहीं करनी चाहिए...?

जो व्यक्ति दिन-रात परिवार के दो वक्त के भोजन के लिए मेहनत करता है, क्या उसे अपने लिए कुछ आत्मशांति देने वाली नियोजित साधना नहीं करनी चाहिए...?



जीवन देखते-देखते मुट्ठी में पकड़ी रेत की तरह फिसल जाएगा, और अंत में केवल पछतावा ही रह जाएगा। तब क्या करोगे...?

उसी साधना के आधार पर हम अपने शरीर में स्थित रहस्यों को कैसे पहचान सकते हैं या समझ सकते हैं...! इसी उद्देश्य से पहले भाग में षट्चक्र और हमारे नामस्मरण साधना के बीच का संबंध बताया गया है।


🌺 मूलाधार चक्र और हमारा साधनामय शरीर

हमारी तीनों साधनाओं के निरंतर अभ्यास से शरीर में स्थित स्थूल प्रकृति के अनुसार नाड़ियों की शुद्धि आरंभ होती है, और शरीर में हलकेपन की अनुभूति होने लगती है। इन नाड़ियों में प्रमुख रूप से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी का समावेश होता है।

शरीर में गुदा द्वार से दो अंगुल ऊपर एक सूक्ष्म मूलाधार चक्र स्थित होता है। दिनभर नियमित रूप से किए गए छह सामूहिक नामस्मरण के परिणामस्वरूप शरीर शुद्धि के माध्यम से मूलाधार चक्र का शुद्धिकरण आरंभ होता है।

यह मूलाधार चक्र पृथ्वी तत्व का प्रतीक है। इसका बीज मंत्र “लं” है, देवता लंबोदर (श्री गणेश) हैं। डाकिनी इस मातृका बीज मंत्र की शक्ति हैं, ऐरावत इसका वाहन है, और वं, शं, षं, सं ये इसके चार दलों के बीज मंत्र हैं। यह चक्र हमारे अन्नमय कोश से जुड़ा है।

मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए “सांसारिक लोगों के लिए अनुभवसिद्ध और सरल साधना” को समझना मूल आधार है। क्योंकि हमारी सही धारणा ही हमें सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकती है। हमारा दैनिक सामूहिक नामस्मरण ही हमें शरीरशुद्धि प्रदान कर सकता है।

मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए घंटों एक ही स्थान पर बैठकर ध्यान करने की आवश्यकता नहीं है। यह साधना हम अपने दैनिक कार्य और व्यवहार करते हुए भी कर सकते हैं। शरीर को स्वतंत्र रखते हुए भी परमात्मिक प्रगति प्राप्त की जा सकती है।


🌼 मूलाधार चक्र जागरण के प्रारंभिक लाभ

  • १. आध्यात्मिक रुचि का उदय होना।
  • २. सद्गुरु की खोज की तीव्र इच्छा होना।
  • ३. इच्छाशक्ति का प्रबल होना।
  • ४. लोगों को पहचानने की क्षमता विकसित होना।
  • ५. नामस्मरण में एकाग्रता बढ़ना।
  • ६. दिव्य उपस्थिति का अनुभव बढ़ना।
  • ७. शरीर में हलकेपन का अनुभव होना।
  • ८. मन में सदा आनंदपूर्ण वातावरण रहना।
  • ९. समझने और ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होना।

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