![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhD_kOf6iY4Y7D7ppt_VmCegYFrSloL-V68DkYDLjmb6wWbPoVExiGz8bE0M_5EUPdvCJiT4-DRKALVEU9ydWe5zv9SVni3he4k_jWdJJHV-P9UCiSbXzbIQDtuNA_lIapReIMYNkwyJt0zgUHkM7BHoLvLsl2pa7hazR0AsjdaFm4Plr2E5jJt1mYuf0_G/w640-h94/99233.webp)
भैरवी तन्त्र में भुवनेश्वरी के स्वरूप का निरूपण इस प्रकार किया जाता है...
उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुड्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाड्कुशपाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।
इसका तत्व-चिन्तन इस प्रकार है--सूर्य से उत्पन्न होने पर पारमेष्ठ्य सोम की आहुति हुई, उससे यज्ञ हुआ। यज्ञ से त्रैलोक्य का निर्माण हुआ। विश्वोत्पत्ति के उपक्रम में 'षोडशी' की सत्ता थी। जब वह शक्ति भुवनों का संचालन करती है तो वही भुवनेश्वरी कहलाती है। यह चौथी महाविद्या चौथी सृष्टि धारा है।
उपयुक्त श्लोक में भुवनेश्वरी को 'भुवनेशी' कहा गया है, वह 'इन्दु किरीटी' है, 'त्रिनेत्रा' है, 'वरदा' है, 'स्मेरमुखी' है। उसके आयुध 'पाश', 'अंकुश' आदि हैं।
इनकी प्रतीकात्मक व्याख्या इस तरह है-- यदि सूर्य में सोमाहुति न होती तो यज्ञ न उत्पन्न होता। यज्ञ की उत्पत्ति के बिना भुवन-रचना असंभव हो जाती, और भुवनों के अभाव में भुवनेश्वरी प्रसुप्त रहती। सूर्य के मस्तक पर ब्राह्मणस्पत्य सोम आहुत हो रहा है, इसी से भुवन उत्पन्न होते हैं और इसी से भुवनेश्वरी प्रबुद्ध होती है। 'इन्दु किरीटी' इसी अवस्था का प्रतीक है।
'त्रिनेत्र' की प्रतीक-व्याख्या वही है जो 'षोडशी' महाविद्या के प्रसंग में की जा चुकी है। संसार में जितने यज्ञ हैं, उन सभी को भुवनेशी से आहुति मिलती है। ८४ लाख योनियों का पोषण भुवनेशी ही करती है, इसलिए इसे 'वरदा' कहा गया है। 'वरदा' भरण-पोषण का प्रतीक है।
उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुड्गकुचां नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाड्कुशपाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्।
इसका तत्व-चिन्तन इस प्रकार है--सूर्य से उत्पन्न होने पर पारमेष्ठ्य सोम की आहुति हुई, उससे यज्ञ हुआ। यज्ञ से त्रैलोक्य का निर्माण हुआ। विश्वोत्पत्ति के उपक्रम में 'षोडशी' की सत्ता थी। जब वह शक्ति भुवनों का संचालन करती है तो वही भुवनेश्वरी कहलाती है। यह चौथी महाविद्या चौथी सृष्टि धारा है।
उपयुक्त श्लोक में भुवनेश्वरी को 'भुवनेशी' कहा गया है, वह 'इन्दु किरीटी' है, 'त्रिनेत्रा' है, 'वरदा' है, 'स्मेरमुखी' है। उसके आयुध 'पाश', 'अंकुश' आदि हैं।
इनकी प्रतीकात्मक व्याख्या इस तरह है-- यदि सूर्य में सोमाहुति न होती तो यज्ञ न उत्पन्न होता। यज्ञ की उत्पत्ति के बिना भुवन-रचना असंभव हो जाती, और भुवनों के अभाव में भुवनेश्वरी प्रसुप्त रहती। सूर्य के मस्तक पर ब्राह्मणस्पत्य सोम आहुत हो रहा है, इसी से भुवन उत्पन्न होते हैं और इसी से भुवनेश्वरी प्रबुद्ध होती है। 'इन्दु किरीटी' इसी अवस्था का प्रतीक है।
'त्रिनेत्र' की प्रतीक-व्याख्या वही है जो 'षोडशी' महाविद्या के प्रसंग में की जा चुकी है। संसार में जितने यज्ञ हैं, उन सभी को भुवनेशी से आहुति मिलती है। ८४ लाख योनियों का पोषण भुवनेशी ही करती है, इसलिए इसे 'वरदा' कहा गया है। 'वरदा' भरण-पोषण का प्रतीक है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-Js9WpDsxS31xSYRNqiTM89t5pTujt5TIzISPO2VELIF1wSb7Ssc38Q6dxpodLWcnECGI6VuE4Ymm54mVJKdrJCK8_WFXwod8llK3sVu85pdv74UclTKAsv4WYH-uQ7MKmyzOz4Ds2lXrHEhUzPwaHeW8JG_57F9IzqgoH3wQD1m-EfV8YfJBupgh/w640-h640/0.png')
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHieQfSUXXO3mhKOWdqNjFhnPhrEne-XLLm8z5--xl19BRBijioh-2SKcPr9f5iU-S_Gv1jQdhCr_cTO3bftIqCgpehUDSNJpVZSyQz1-lbSHozHlkSxt6aU3hCxNtgYyE52wG3Vs3QcTi-ei0cjqQuPo5tMX1CiKQCwAhBn9PThu2mOjseraJJHxMKQ/s16000/unnmed.jpg')
जो भुवन-प्रत्यय प्रलय-समुद्र में विलीन था, वह भुवनेश्वरी के प्रभाव से विकसित हो रहा है। दयामयी, कृपामयी, स्नेहमयी माँ की स्नेह दृष्टि का प्रतीक 'स्मेरमुखी' है और शासन-शक्ति का प्रतीक अंकुश है।
संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
( Dattaprabodhinee Author )
भ्रमणध्वनी : +91 93243 58115
( Whatsapp Or Sms Only )
( Whatsapp Or Sms Only )
ईस विषय के अनुरुप महत्वपुर्ण पोस्टस्...
0 टिप्पणियाँ