
तन्त्रशास्त्र की 'बगलामुखी' और वैदिक साहित्य की 'बल्गामुखी' दोनों एक ही है। व्याकरण के लोपागमवर्णविकार पद्धति के अनुसार जिस प्रकार 'हिंस' शब्द वर्णव्यत्यय से 'सिंह' बन जाता है, उसी प्रकार निगम का 'बल्गा' शब्द आगम शास्त्र में पहुँचकर 'बगला' रूप में परिणत हो जाता है।
बगलामुखी शक्ति कृत्याशक्ति (मारण, मोहन, उच्चाटन, कीलन, विद्वेषण में प्रयुक्त होने वाली) है। इसकी आराधना से आराधक अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुँचा सकता है।
बगलामुखी का सम्बन्ध अथर्वासूत्र से है। अथर्ववेदीय चिन्तन के आधार पर बगलामुखी का तत्व-चिन्तन इस प्रकार है--
हर प्राणी के शरीर से 'अथर्वा' नाम का एक प्राणसूत्र निकला करता है। यह प्राणरूप है इसलिए इसे स्थूल दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। व्यावहारिक दृष्टि से इस 'अथर्वा प्राणसूत्र' को इस तरह समझा जा सकता है--
दुरातिदूर बसे हुए किसी आत्मीयजन के दुःख से अकस्मात् हमारा मन व्याकुल हो उठता है, परोक्ष रूप में उस दुःख का संकेत और उनकी अनुभूति करने वाले परोक्ष सूत्र का नाम ' अथर्वासूत्र' है। अथर्वासूत्र एक ऐसा शक्ति-सूत्र है, जिसकी साधना करने से हजारों मील दूर स्थिति व्यक्ति का आकर्षण किया जाता है। लोक-व्यवहार में घर में प्रातःकाल कौवा बोलने से किसी अतिथि के आगमन की कल्पना की जाती है। कौवा को अतिथि के आगमन का संकेत अथर्वासूत्र से मिलता है।
जिस अथर्वासूत्र को हम नहीं जान पाते, उसे कुत्ते प्राणशक्ति द्वारा जान जाते हैं। चोर, डकैत, हत्यारे जिस रास्ते से जाते हैं, उस रास्ते में उनका अथर्वाप्राण वासना रूप से मिट्टी में समा जाता है। कुत्ते कपड़ा, नाखून, केश, मिट्टी, पदार्थ आदि अंग अवयव, सूँघकर अपराधी को पहचानते हैं। चिकित्सक विशेष रोगी का कपड़ा सूँघ कर रोग का निदान करते हैं, तान्त्रिक किसी के द्वारा उपयोग में लाई गई किसी भी वस्तु पर मनमाना प्रयोग करते हैं-- इसका तात्पर्य यही है कि अंगों, अंगावययों और उपयोग में लाई गई वस्तुओं आदि पर व्यक्ति के 'अथर्वाप्राण' वासना रूप में विद्यमान रहते हैं।
अथर्वाप्राणों का प्रयोग ऋग्वेद काल से अब तक जन समाज में प्रचलित है। भले ही अब उनके वैज्ञानिक रहस्य का बोध हमें न हो, अथवा किसी और विज्ञान विद्या से हम उसकी व्याख्या करें। ऋग्वेद में 'सरमा' नाम की कुतिया द्वारा देवताओं की गौओं के अपहरणकर्ता पणियों का पता लगाना, देवताओं द्वारा असुरों पर कृत्या का प्रयोग करना इत्यादि घटनाओं के मूल में 'अथर्वासूत्र' ही है।
अथर्ववेद के 'घोरअंगिरस और अथर्वांगिरस' दो भेद हैं। घोरअडिंरा में औषधि, वनस्पति विज्ञान है और अथर्व अंगिरा में कृत्या (अभिचार कर्म) के प्रयोग है। बगलामुखी की रहस्य-साधना के प्रतिपादक बगलामुखी तन्त्र में बगलामुखी का जो प्रार्थना-श्लोक है, उसमें बगलामुखी शक्ति के उपर्युक्त गुण-कर्मों का निदर्शन मिलता है
जिह्यग्रमादाय करेण देवीः
वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन् च दक्षिणेन,
पीताम्बराख्यां द्विभुजां नमामि।।
संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
( Dattaprabodhinee Author )
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बगलामुखी शक्ति कृत्याशक्ति (मारण, मोहन, उच्चाटन, कीलन, विद्वेषण में प्रयुक्त होने वाली) है। इसकी आराधना से आराधक अपने शत्रु को मनमाना कष्ट पहुँचा सकता है।
बगलामुखी का सम्बन्ध अथर्वासूत्र से है। अथर्ववेदीय चिन्तन के आधार पर बगलामुखी का तत्व-चिन्तन इस प्रकार है--
हर प्राणी के शरीर से 'अथर्वा' नाम का एक प्राणसूत्र निकला करता है। यह प्राणरूप है इसलिए इसे स्थूल दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। व्यावहारिक दृष्टि से इस 'अथर्वा प्राणसूत्र' को इस तरह समझा जा सकता है--
दुरातिदूर बसे हुए किसी आत्मीयजन के दुःख से अकस्मात् हमारा मन व्याकुल हो उठता है, परोक्ष रूप में उस दुःख का संकेत और उनकी अनुभूति करने वाले परोक्ष सूत्र का नाम ' अथर्वासूत्र' है। अथर्वासूत्र एक ऐसा शक्ति-सूत्र है, जिसकी साधना करने से हजारों मील दूर स्थिति व्यक्ति का आकर्षण किया जाता है। लोक-व्यवहार में घर में प्रातःकाल कौवा बोलने से किसी अतिथि के आगमन की कल्पना की जाती है। कौवा को अतिथि के आगमन का संकेत अथर्वासूत्र से मिलता है।
जिस अथर्वासूत्र को हम नहीं जान पाते, उसे कुत्ते प्राणशक्ति द्वारा जान जाते हैं। चोर, डकैत, हत्यारे जिस रास्ते से जाते हैं, उस रास्ते में उनका अथर्वाप्राण वासना रूप से मिट्टी में समा जाता है। कुत्ते कपड़ा, नाखून, केश, मिट्टी, पदार्थ आदि अंग अवयव, सूँघकर अपराधी को पहचानते हैं। चिकित्सक विशेष रोगी का कपड़ा सूँघ कर रोग का निदान करते हैं, तान्त्रिक किसी के द्वारा उपयोग में लाई गई किसी भी वस्तु पर मनमाना प्रयोग करते हैं-- इसका तात्पर्य यही है कि अंगों, अंगावययों और उपयोग में लाई गई वस्तुओं आदि पर व्यक्ति के 'अथर्वाप्राण' वासना रूप में विद्यमान रहते हैं।


अथर्वाप्राणों का प्रयोग ऋग्वेद काल से अब तक जन समाज में प्रचलित है। भले ही अब उनके वैज्ञानिक रहस्य का बोध हमें न हो, अथवा किसी और विज्ञान विद्या से हम उसकी व्याख्या करें। ऋग्वेद में 'सरमा' नाम की कुतिया द्वारा देवताओं की गौओं के अपहरणकर्ता पणियों का पता लगाना, देवताओं द्वारा असुरों पर कृत्या का प्रयोग करना इत्यादि घटनाओं के मूल में 'अथर्वासूत्र' ही है।
अथर्ववेद के 'घोरअंगिरस और अथर्वांगिरस' दो भेद हैं। घोरअडिंरा में औषधि, वनस्पति विज्ञान है और अथर्व अंगिरा में कृत्या (अभिचार कर्म) के प्रयोग है। बगलामुखी की रहस्य-साधना के प्रतिपादक बगलामुखी तन्त्र में बगलामुखी का जो प्रार्थना-श्लोक है, उसमें बगलामुखी शक्ति के उपर्युक्त गुण-कर्मों का निदर्शन मिलता है
जिह्यग्रमादाय करेण देवीः
वामेन शत्रून् परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन् च दक्षिणेन,
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संपर्क : श्री. कुलदीप निकम
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भ्रमणध्वनी : +91 9619011227
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